शत्रु की सलाह
नदी किनारे एक विशाल पेड़ था। उस पेड़ पर बगुलों का बहुत बड़ा झुंड रहता था। उसी पेड़ के कोटर में काला नाग रहता था। जब अंडों से बच्चे निकल आते और जब वह कुछ बड़े होकर मां-बाप से दूर रहने लगते, तभी वह नाग उन्हें खा जाता था। इस प्रकार वर्षों से काला नाग बगुलों के बच्चे हड़पता आ रहा था। बगुले भी वहां से जाने का नाम नहीं लेते थे, क्योंकि वहां नदी में कछुओं की भरमार थी। कछुओं का नरम मांस बगुलों को बहुत अच्छा लगता था।
इस बार नाग जब एक बच्चे को हड़पने लगा तो पिता बगुले की नजर उस पर पड़ गई। बगुले को पता लग गया कि उसके पहले बच्चों को भी वह नाग खाता रहा होगा। उसे बहुत शोक हुआ। उसे आंसू बहाते एक कछुए ने देखा और पूछा, 'मामा, क्यों रो रहे हो?'
गम में जीव हर किसी के आगे अपना दुखड़ा रोने लगता है। उसने नाग और अपने मृत बच्चों के बारे में बताकर कहा, 'मैं उससे बदला लेना चाहता हूं।'
कछुए ने सोचा, 'अच्छा तो इस गम में मामा रो रहा है। जब यह हमारे बच्चे खा जाते हैं, तब तो कुछ ख्याल नहीं आता कि हमें कितना गम होता होगा। तुम सांप से बदला लेना चाहते हो तो हम भी तो तुमसे बदला लेना चाहेंगे।'
बगुला अपने शत्रु को अपना दुख बताकर गलती कर बैठा था। चतुर कछुआ एक तीर से दो शिकार मारने की योजना सोच चुका था। वह बोला, 'मामा! मैं तुम्हें बदला लेने का बहुत अच्छा उपाय सुझाता हूं।'
बगुले ने अधीर स्वर में पूछा, 'जल्दी बताओ, वह उपाय क्या है। मैं तुम्हारा अहसान जीवनभर नहीं भूलूंगा।’ कछुआ मन ही मन मुस्कुराया और उपाय बताने लगा, 'यहां से कुछ दूर एक नेवले का बिल है। नेवला सांप का घोर शत्रु है। नेवले को मछलियां बहुत प्रिय होती हैं। तुम छोटी-छोटी मछलियां पकड़कर नेवले के बिल से सांप के कोटर तक बिछा दो, नेवला मछलियां खाता-खाता सांप तक पहुंच जाएगा और उसे समाप्त कर देगा।’ बगुला बोला, 'तुम जरा मुझे उस नेवले का बिल दिखा दो।’
कछुए ने बगुले को नेवले का बिल दिखा दिया। बगुले ने वैसा ही किया, जैसा कछुए ने समझाया था। नेवला सचमुच मछलियां खाता हुआ कोटर तक पहुंचा। नेवले को देखते ही नाग ने फुफकार छोड़ी। कुछ ही देर की लड़ाई में नेवले ने सांप के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।
गुला खुशी से उछल पड़ा। कछुए ने मन ही मन में कहा, 'यह तो शुरुआत है मूर्ख बगुले। अब मेरा बदला शुरू होगा और तुम सब बगुलों का नाश होगा।'
गुला खुशी से उछल पड़ा। कछुए ने मन ही मन में कहा, 'यह तो शुरुआत है मूर्ख बगुले। अब मेरा बदला शुरू होगा और तुम सब बगुलों का नाश होगा।'
कछुए का सोचना सही निकला। नेवला नाग को मारने के बाद वहां से नहीं गया। उसे अपने चारों ओर बगुले नजर आए, उसके लिए महीनों के लिए स्वादिष्ट खाना। नेवला उसी कोटर में बस गया, जिसमें नाग रहता था और रोज एक बगुले को अपना शिकार बनाने लगा। इस प्रकार एक-एक करके सारे बगुले मारे गए।
सीखः शत्रु की सलाह में उसका स्वार्थ छिपा होता है।
क्या बनना चाहते हो?
एक बार एक नवयुवक किसी जेन मास्टर के पास पहुंचा।
मास्टर बोले, 'पानी के गिलास में एक मुट्ठी नमक डालो और उसे पीयो।'
युवक ने ऐसा ही किया।
'इसका स्वाद कैसा लगा?', मास्टर ने पूछा।
'बहुत ही खराब… एकदम खारा,' युवक थूकते हुए बोला।
मास्टर मुस्कुराते हुए बोले, 'एक बार फिर अपने हाथ में एक मुट्ठी नमक ले लो और मेरे पीछे-पीछे आओ।'
दोनों धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे और थोड़ी दूर जाकर स्वच्छ पानी से बनी एक झील के सामने रुक गए।
'चलो, अब इस नमक को पानी में डाल दो', मास्टर ने निर्देश दिया।
युवक ने ऐसा ही किया।
'अब इस झील का पानी पियो', मास्टर बोले।
युवक पानी पीने लगा।
एक बार फिर मास्टर ने पूछा, 'बताओ इसका स्वाद कैसा है, क्या अभी भी तुम्हें ये खारा लग रहा है?'
'नहीं, ये तो मीठा है, बहुत अच्छा है', युवक बोला।
मास्टर युवक के बगल में बैठ गए और उसका हाथ थामते हुए बोले, 'जीवन के दुख बिलकुल नमक की तरह हैं, न इससे कम न ज्यादा। जीवन में दुख की मात्रा वही रहती है, बिलकुल वही लेकिन हम कितने दुख का स्वाद लेते हैं यह इस पर निर्भर करता है कि हम उसे किस पात्र में डाल रहे हैं। इसलिए जब तुम दुखी हो तो सिर्फ इतना कर सकते हो कि खुद को बड़ा कर लो… गिलास मत बने रहो, झील बन जाओ।
सच्चाई का आईना
एक दिन सारे कर्मचारी जब ऑफिस पहुंचे तो उन्हें गेट पर एक बड़ा-सा नोटिस लगा दिखा :- 'इस कंपनी में अभी तक जो व्यक्ति आपको आगे बढ़ने से रोक रहा था कल उसकी मृत्यु हो गई। हम आपको उसे आखिरी बार देखने का मौका दे रहे हैं, कृपया बारी-बारी से मीटिंग हॉल में जाएं और उसे देखने का कष्ट करें।'
जो भी नोटिस पढ़ता उसे पहले तो दुख होता लेकिन फिर जिज्ञासा होती कि आखिर वो कौन था? जिसने उसकी ग्रोथ रोक रखी थी... और वो हॉल की तरफ चल देता...। देखते-देखते हॉल के बाहर काफी भीड़ इकठ्ठा हो गई, गार्ड ने सभी को रोक रखा था और उन्हें एक-एक करके अंदर जाने दे रहा था।
सबने देखा की अंदर जाने वाला व्यक्ति काफी गंभीर होकर बाहर निकलता, मानो उसके किसी करीबी की मृत्यु हुई हो!
इस बार अंदर जाने की बारी एक पुराने कर्मचारी की थी, उसे सब जानते थे। सबको पता था कि उसे हर एक चीज से शिकायत रहती है। कंपनी से, सहकर्मियों से, वेतन से, तरक्की से, हर एक चीज से।
पर आज वो थोड़ा खुश लग रहा था, उसे लगा कि चलो जिसकी वजह से उसकी लाइफ में इतनी समस्या थीं वो गुजर गया।
अपनी बारी आते ही वो तेजी से ताबूत के पास पहुंचा और बड़ी जिज्ञासा से उचक कर अंदर झांकने लगा। पर यह क्या... अंदर तो एक बड़ा-सा आईना रखा हुआ था।
अपनी बारी आते ही वो तेजी से ताबूत के पास पहुंचा और बड़ी जिज्ञासा से उचक कर अंदर झांकने लगा। पर यह क्या... अंदर तो एक बड़ा-सा आईना रखा हुआ था।
इस पूरे संसार में आप वो अकेले व्यक्ति हैं जो आपकी जिंदगी में क्रांति ला सकते हैं।
आपकी जिंदगी तब नहीं बदलती जब आपका बॉस बदलता है, जब आपके दोस्त बदलते हैं, जब आपके पार्टनर बदलते हैं, या जब आपकी कंपनी बदलती है...। जिंदगी तब बदलती है जब आप बदलते हैं, जब आप अपनी सीमित सोच तोड़ते हैं, जब आप इस बात को रियलाइज करते हैं कि अपनी जिंदगी के लिए सिर्फ और सिर्फ आप जिम्मेदार हैं। सबसे अच्छा रिश्ता जो आप बना सकते हैं वो खुद से बनाया रिश्ता है। खुद को देखिए, समझिए।
कठिनाइयों से घबराइए नहीं, उन्हें पीछे छोड़िए, विजेता बनिए, खुद का विकस करिए और अपनी उस वास्तविकता का निर्माण करिए जिसका आप करना चाहते हैं !!!
दोस्तों, दुनिया एक आईने की तरह है, वो इंसान को उसके सशक्त विचारों का प्रतिबिंब प्रदान करती है। ताबूत में पड़ा आईना दरअसल आपको यह बताता है कि जहां आप अपने विचारों की शक्ति से अपनी दुनिया बदल सकते हैं, वहीं आप जीवित होकर भी एक मृत के समान जी रहे हैं।
कैसे हुआ कौए का रंग काला
कौवे के रंग के बारे में एक पुरानी किवदंती है। एक ऋषि ने कौए को अमृत खोजने भेजा, लेकिन उन्होंने यह इत्तला भी दी कि सिर्फ अमृत की जानकारी ही लेना है, उसे पीना नहीं है।
एक बरस के परिश्रम के पश्चात सफेद कौए को अमृत की जानकारी मिली, पीने की लालसा कौआ रोक नहीं पाया एवं अमृत पी लिया। ऋषि को आकर सारी जानकारी दी।
इस पर ऋषि आवेश में आ गए और श्राप दिया कि तुमने मेरे वचन को भंग कर अपवित्र चोंच द्वारा पवित्र अमृत को भ्रष्ट किया है। इसलिए प्राणी मात्र में तुम्हें घृणास्पद पक्षी माना जाएगा एवं अशुभ पक्षी की तरह मानव जाति हमेशा तुम्हारी निंदा करेगी, लेकिन चूंकि तुमने अमृत पान किया है, इसलिए तुम्हारी स्वाभाविक मृत्यु कभी नहीं होगी। कोई बीमारी भी नहीं होगी एवं वृद्धावस्था भी नहीं आएगी।
भाद्रपद के महीने के 16 दिन तुम्हें पितरों का प्रतीक समझ कर आदर दिया जाएगा एवं तुम्हारी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होगी।
इतना बोलकर ऋषि ने अपने कमंडल के काले पानी में उसे डूबो दिया। काले रंग का बनकर कौआ उड़ गया तभी से कौए काले हो गए।
इतना बोलकर ऋषि ने अपने कमंडल के काले पानी में उसे डूबो दिया। काले रंग का बनकर कौआ उड़ गया तभी से कौए काले हो गए।
रंगा सियार
एक बार की बात है कि एक सियार जंगल में एक पुराने पेड़ के नीचे खड़ा था। पूरा पेड़ हवा के तेज झोंके से गिर पड़ा। सियार उसकी चपेट में आ गया और बुरी तरह घायल हो गया। वह किसी तरह घिसटता-घिसटता अपनी मांद तक पहुंचा।
कई दिन बाद वह मांद से बाहर आया। उसे भूख लग रही थी। शरीर कमजोर हो गया था तभी उसे एक खरगोश नजर आया। उसे दबोचने के लिए वह झपटा।
सियार कुछ दूर भाग कर हांफने लगा। उसके शरीर में जान ही कहां रह गई थी? फिर उसने एक बटेर का पीछा करने की कोशिश की। यहां भी वह असफल रहा। हिरण का पीछा करने की तो उसकी हिम्मत भी न हुई।
सियार कुछ दूर भाग कर हांफने लगा। उसके शरीर में जान ही कहां रह गई थी? फिर उसने एक बटेर का पीछा करने की कोशिश की। यहां भी वह असफल रहा। हिरण का पीछा करने की तो उसकी हिम्मत भी न हुई।
वह खड़ा सोचने लगा। शिकार वह कर नहीं पा रहा था। भूखों मरने की नौबत आई ही समझो। क्या किया जाए? वह इधर-उधर घूमने लगा पर कहीं कोई मरा जानवर नहीं मिला। घूमता-घूमता वह एक बस्ती में आ गया। उसने सोचा शायद कोई मुर्गी या उसका बच्चा हाथ लग जाए। सो, वह इधर-उधर गलियों में घूमने लगा।
तभी कुत्ते भौं-भौं करते उसके पीछे पड़ गए। सियार को जान बचाने के लिए भागना पड़ा। गलियों में घुसकर उनको छकाने की कोशिश करने लगा पर कुत्ते तो कस्बे की गली-गली से परिचित थे। सियार के पीछे पड़े कुत्तों की टोली बढ़ती जा रही थी और सियार के कमजोर शरीर का बल समाप्त होता जा रहा था।
सियार भागता हुआ रंगरेजों की बस्ती में आ पहुंचा था। वहां उसे एक घर के सामने एक बड़ा ड्रम नजर आया। वह जान बचाने के लिए उसी ड्रम में कूद पड़ा। ड्रम में रंगरेज ने कपड़े रंगने के लिए रंग घोल रखा था।
कुत्तों का टोला भौंकता चला गया। सियार सांस रोक कर रंग में डूबा रहा। वह केवल सांस लेने के लिए अपनी थूथनी बाहर निकालता। जब उसे पूरा यकीन हो गया कि अब कोई खतरा नहीं है तो वह बाहर निकला।
वह रंग में भीग चुका था। जंगल में पहुंचकर उसने देखा कि उसके शरीर का सारा रंग हरा हो गया है। उस ड्रम में रंगरेज ने हरा रंग घोल रखा था। उसके हरे रंग को जो भी जंगली जीव देखता, वह भयभीत हो जाता। उनको खौफ से कांपते देखकर रंगे सियार के दुष्ट दिमाग में एक योजना आई।
वह रंग में भीग चुका था। जंगल में पहुंचकर उसने देखा कि उसके शरीर का सारा रंग हरा हो गया है। उस ड्रम में रंगरेज ने हरा रंग घोल रखा था। उसके हरे रंग को जो भी जंगली जीव देखता, वह भयभीत हो जाता। उनको खौफ से कांपते देखकर रंगे सियार के दुष्ट दिमाग में एक योजना आई।
रंगे सियार ने डरकर भागते जीवों को आवाज दी, 'भाईयों, भागो मत मेरी बात सुनो।'
उसकी बात सुनकर सभी भागते जानवर ठिठके।
उनके ठिठकने का रंगे सियार ने फायदा उठाया और बोला, 'देखो-देखो मेरा रंग। ऐसा रंग किसी जानवर का धरती पर है? नहीं ना। मतलब समझो। भगवान ने मुझे यह खास रंग देकर तुम्हारे पास भेजा है। तुम सब जानवरों को बुला लाओ तो मैं भगवान का संदेश सुनाऊं।'
उसकी बातों का सब पर गहरा प्रभाव पड़ा। वे जाकर जंगल के दूसरे सभी जानवरों को बुलाकर लाए। जब सब आ गए तो रंगा सियार एक ऊंचे पत्थर पर चढ़कर बोला, 'वन्य प्राणियों, प्रजापति ब्रह्मा ने मुझे खुद अपने हाथों से इस अलौकिक रंग का प्राणी बनाकर कहा कि संसार में जानवरों का कोई शासक नहीं है। तुम्हें जाकर जानवरों का राजा बनकर उनका कल्याण करना है। तुम्हार नाम सम्राट ककुदुम होगा। तीनों लोकों के वन्य जीव तुम्हारी प्रजा होंगे। अब तुम लोग अनाथ नहीं रहे। मेरी छत्रछाया में निर्भय होकर रहो।'
सभी जानवर वैसे ही सियार के अजीब रंग से चकराए हुए थे। उसकी बातों ने तो जादू का काम किया। शेर, बाघ व चीते की भी ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे रह गई। उसकी बात काटने की किसी में हिम्मत न हुई। देखते ही देखते सारे जानवर उसके चरणों में लोटने लगे और एक स्वर में बोले, 'हे बह्मा के दूत, प्राणियों में श्रेष्ठ ककुदुम, हम आपको अपना सम्राट स्वीकार करते हैं। भगवान की इच्छा का पालन करके हमें बड़ी प्रसन्नता होगी।'
एक बूढ़े हाथी ने कहा, 'हे सम्राट, अब हमें बताइए कि हमारा क्या कर्तव्य है?'
रंगा सियार सम्राट की तरह पंजा उठाकर बोला, 'तुम्हें अपने सम्राट की खूब सेवा और आदर करना चाहिए। उसे कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए। हमारे खाने-पीने का शाही प्रबंध होना चाहिए।'
शेर ने सिर झुकाकर कहा, 'महाराज, ऐसा ही होगा। आपकी सेवा करके हमारा जीवन धन्य हो जाएगा।'
बस, सम्राट ककुदुम बने रंगे सियार के शाही ठाठ हो गए। वह राजसी शान से रहने लगा।
कई लोमड़ियां उसकी सेवा में लगी रहतीं, भालू पंखा झुलाता। सियार जिस जीव का मांस खाने की इच्छा जाहिर करता, उसकी बलि दी जाती।
जब सियार घूमने निकलता तो हाथी आगे-आगे सूंड उठाकर बिगुल की तरह चिंघाड़ता चलता। दो शेर उसके दोनों ओर कमांडो बॉडी गार्ड की तरह होते।
रोज ककुदुम का दरबार भी लगता। रंगे सियार ने एक चालाकी यह कर दी थी कि सम्राट बनते ही सियारों को शाही आदेश जारी कर उस जंगल से भगा दिया था। उसे अपनी जाति के जीवों द्वारा पहचान लिए जाने का खतरा था।
एक दिन सम्राट ककुदुम खूब खा-पीकर अपने शाही मांद में आराम कर रहा था कि बाहर उजाला देखकर उठा। बाहर आया तो चांदनी रात खिली थी। पास के जंगल में सियारों की टोलियां ‘हू हू SSS’ की बोली बोल रही थी। उस आवाज को सुनते ही ककुदुम अपना आपा खो बैठा। उसके अंदर के जन्मजात स्वभाव ने जोर मारा और वह भी मुंह चांद की ओर उठाकर और सियारों के स्वर में मिलाकर ‘हू हू SSS’ करने लगा।
शेर और बाघ ने उसे ‘हू हू SSS’ करते देख लिया। वे चौंके, बाघ बोला, 'अरे, यह तो सियार है। हमें धोखा देकर सम्राट बना रहा। मारो नीच को।'
शेर और बाघ उसकी ओर लपके और देखते ही देखते उसका तिया-पांचा कर डाला।
सीखः नकलीपन की पोल देर या सबेर जरूर खुलती है।
बहुरूपिया
एक नगर में धोबी रहता था। उसके पास एक गधा था, जिस पर वह कपड़े लादकर नदी तट पर ले जाता और धुले कपड़े लादकर लौटता।
धोबी का परिवार बड़ा था। सारी कमाई आटे, दाल और चावल में खप जाती।
गधे के लिए चारा खरीदने के लिए कुछ न बचता। गांव की चारागाह पर गाय-भैंसें चरतीं। अगर गधा उधर जाता तो चरवाहे डंडों से पीटकर उसे भगा देते। ठीक से चारा न मिलने के कारण गधा बहुत दुर्बल होने लगा।
धोबी को भी चिंता होने लगी, क्योंकि कमजोरी के कारण उसकी चाल इतनी धीमी हो गई थी कि नदी तक पहुंचने में पहले से दुगना समय लगने लगा था।
एक दिन नदी किनारे जब धोबी ने कपड़े सूखने के लिए बिछा रखे थे तो आंधी आने से कपड़े इधर-उधर हवा में उड़ गए। आंधी थमने पर उसे दूर-दूर तक जाकर कपड़े उठाकर लाने पड़े। अपने कपड़े ढूंढता हुआ वह सरकंडो के बीच घुसा। सरकंडो के बीच उसे एक मरा बाघ नजर आया।
धोबी कपड़े लेकर लौटा और गट्ठर को बांधकर गधे पर लादने लगा, तो वह लड़खड़ाने लगा। धोबी ने देखा कि उसका गधा इतना कमजोर हो गया है कि एक-दो दिन बाद बिल्कुल ही बैठ जाएगा। तभी धोबी को एक उपाय सूझा।
वह सोचने लगा, 'अगर मैं उस बाघ की खाल उतारकर ले आऊं और रात को इस गधे को वह खाल ओढ़ाकर खेतों की ओर भेजूं तो लोग इसे बाघ समझकर डरेंगे, जिससे कोई निकट नहीं फटकेगा और गधा खेत चर लिया करेगा।'
धोबी ने ऐसा ही किया। दूसरे दिन नदी तट पर कपडे जल्दी धोकर सूखने डाल दिए और फिर वह सरकंडो के बीच जाकर बाघ की खाल उतारने लगा। शाम को लौटते समय वह खाल को कपड़ों के बीच छिपाकर घर ले आया।
रात को जब सब सो गए तो उसने बाघ की खाल गधे को ओढ़ाई। गधा दूर से देखने पर बाघ जैसा ही नजर आने लगा। धोबी संतुष्ट हुआ। फिर उसने गधे को खेतों की ओर खदेड़ दिया। गधे ने एक खेत में जाकर फसल खाना शुरू किया। रात को खेतों की रखवाली करने वालों ने खेत में बाघ देखा तो वे डरकर भाग खडे हुए।
गधे ने भरपेट फसल खाई और रात अंधेरे में ही घर लौट आया। धोबी ने तुरंत खाल उतारकर छिपा ली। अब तो गधे के मजे हो गए।
हर रात धोबी उसे खाल ओढ़ाकर छोड़ देता। गधा सीधे खेतों में पहुंच जाता और मनपसंद फसल खाने लगता। गधे को बाघ समझकर सब अपने घरों में दुबक कर बैठे रहते। फसलें चर-चरकर गधा मोटा होने लगा। अब वह दुगना भार लेकर चलता। धोबी भी खुश हो गया।
मोटा-ताजा होने के साथ-साथ गधे के दिल का भय भी मिटने लगा। उसका जन्मजात स्वभाव जोर मारने लगा। एक दिन भरपेट खाने के बाद गधे की तबीयत मस्त होने लगी। वह भी लगा लोट लगाने। खूब लोट लगाने वह गधा, इसी बीच बाघ की खाल तो एक ओर गिर गई और अब वह केवल गधा बनकर उठ खडा हुआ और डोलता हुआ खेत से बाहर निकला।
गधे के लोट लगाने के समय पौधों के रौंदे जाने और चटकने की आवाज फैली। एक रखवाला चुपचाप बाहर निकला। खेत में झांका तो उसे एक ओर गिरी बाघ की खाल नजर आई और दिखाई दिया खेत से बाहर आता एक गधा। वह चिल्लाया, 'अरे, यह तो गधा है।'
उसकी आवाज औरों ने भी सुनी। सब अपने-अपने डंडे लेकर दौड़े। गधे का कार्यक्रम खेत से बाहर आकर रेंकने का था। उसने मुंह खोला ही था कि उस पर डंडे बरसने लगे। क्रोध से भरे रखवालों ने उसे वहीं ढेर कर दिया। उसकी सारी पोल खुल चुकी थी। धोबी को भी वह नगर छोड़कर कहीं और जाना पड़ा।
सीखः पहनावा बदल कर दूसरों को कुछ ही दिन धोखा दिया जा सकता है। अंत में असली रूप सामने आ ही जाता है।
शिक्षाप्रद बाल कहानी : सुनो सबकी, करो मन की
एक बार की बात है। बहुत से मेंढक जंगल से जा रहे थे। वे सभी आपसी बातचीत में कुछ ज्यादा ही व्यस्त थे। तभी उनमें से दो मेंढक एक जगह एक गड्ढे में गिर पड़े। बाकी मेंढकों ने देखा कि उनके दो साथी बहुत गहरे गड्ढे में गिर गए हैं।
गड्ढा गहरा था और इसलिए बाकी साथियों को लगा कि अब उन दोनों का गड्ढे से बाहर निकल पाना मुश्किल है।
साथियों ने गड्ढे में गिरे उन दो मेंढकों को आवाज लगाकर कहा कि अब तुम खुद को मरा हुआ मानो। इतने गहरे गड्ढे से बाहर निकल पाना असंभव है।
दोनों मेंढकों ने बात को अनसुना कर दिया और बाहर निकलने के लिए कूदने लगे। बाहर झुंड में खड़ेमेंढक उनसे चीख कर कहने लगे कि बाहर निकलने की कोशिश करना बेकार है। अब तुम बाहर नहीं आ पाओगे।
इस पर उस मेंढक ने जवाब दिया- दरअसल मैं थोड़ा-सा ऊंचा सुनता हूं और जब मैं छलांग लगा रहा था तो मुझे लगा कि आप मेरा हौसला बढ़ा रहे हैं और इसलिए मैंने कोशिश जारी रखी और देखिए मैं बाहर आ गया।
सीख : यह कहानी हमें कई बातें कहती है। पहली यह कि हमें हमेशा दूसरों का हौसला बढ़ाने वाली बात ही कहनी चाहिए। दूसरी यह कि जब हमें अपने आप पर भरोसा हो तो दूसरे क्या कह रहे हैं इसकी कोई परवाह नहीं करनी चाहिए।
सीख : यह कहानी हमें कई बातें कहती है। पहली यह कि हमें हमेशा दूसरों का हौसला बढ़ाने वाली बात ही कहनी चाहिए। दूसरी यह कि जब हमें अपने आप पर भरोसा हो तो दूसरे क्या कह रहे हैं इसकी कोई परवाह नहीं करनी चाहिए।
एकता का बल
एक समय की बात है कि कबूतरों का एक दल आसमान में भोजन की तलाश में उड़ता हुआ जा रहा था। गलती से वह दल भटक कर ऐसे प्रदेश के ऊपर से गुजरा, जहां भयंकर अकाल पड़ा था।
कबूतरों का सरदार चिंतित था। कबूतरों के शरीर की शक्ति समाप्त होती जा रही थी। शीघ्र ही कुछ दाना मिलना जरूरी था। दल का युवा कबूतर सबसे नीचे उड़ रहा था। भोजन नजर आने पर उसे ही बाकी दल को सूचित करना था।
कबूतरों का सरदार चिंतित था। कबूतरों के शरीर की शक्ति समाप्त होती जा रही थी। शीघ्र ही कुछ दाना मिलना जरूरी था। दल का युवा कबूतर सबसे नीचे उड़ रहा था। भोजन नजर आने पर उसे ही बाकी दल को सूचित करना था।
बहुत समय उड़ने के बाद कहीं वह सूखाग्रस्त क्षेत्र से बाहर आया। नीचे हरियाली नजर आने लगी तो भोजन मिलने की उम्मीद बनी। युवा कबूतर और नीचे उड़ान भरने लगा।
तभी उसे नीचे खेत में बहुत सारा अन्न बिखरा नजर आया 'चाचा, नीचे एक खेत में बहुत सारे दाने बिखरे पड़े हैं। हम सबका पेट भर जाएगा।’
सरदार ने सूचना पाते ही कबूतरों को नीचे उतरकर खेत में बिखरा दाना चुनने का आदेश दिया। सारा दल नीचे उतरा और दाना चुगने लगा। वास्तव में वह दाना पक्षी पकड़ने वाले एक बहलिए ने बिखेर रखा था। ऊपर पेड़ पर तना था उसका जाल। जैसे ही कबूतर दल दाना चुगने लगा, जाल उन पर आ गिरा। सारे कबूतर फंस गए।
कबूतरों के सरदार ने माथा पीटा 'ओह! यह तो हमें फंसाने के लिए फैलाया गया जाल था। भूख ने मेरी अक्ल पर पर्दा डाल दिया था। मुझे सोचना चाहिए था कि इतना अन्न बिखरा होने का कोई मतलब है। अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत?'
एक कबूतर रोने लगा, बोला, 'हम सब मारे जाएंगे।'
बाकी कबूतर तो हिम्मत हार बैठे थे, पर सरदार गहरी सोच में डूबा था। एकाएक उसने कहा 'सुनो, जाल मजबूत है यह ठीक है, पर इसमें इतनी भी शक्ति नहीं कि एकता की शक्ति को हरा सके। हम अपनी सारी शक्ति को जोड़ें तो मौत के मुंह में जाने से बच सकते हैं।'
युवा कबूतर फड़फड़ाया 'चाचा! साफ-साफ बताओ तुम क्या कहना चाहते हो। जाल ने हमें तोड़ रखा है, शक्ति कैसे जोड़ें?'
सरदार बोला, 'तुम सब चोंच से जाल को पकड़ो, फिर जब मैं फुर्र कहूं तो एक साथ जोर लगाकर उड़ना।'
सबने ऐसा ही किया। तभी जाल बिछाने वाला बहेलियां आता नजर आया। जाल में कबूतर को फंसा देख उसकी आंखें चमकीं। हाथ में पकड़ा डंडा उसने मजबूती से पकड़ा व जाल की ओर दौड़ा।
बहेलिया जाल से कुछ ही दूर था कि कबूतरों का सरदार बोला, 'फुर्रर्रर्र!'
सारे कबूतर एक साथ जोर लगाकर उड़े तो पूरा जाल हवा में ऊपर उठा और सारे कबूतर जाल को लेकर ही उड़ने लगे। कबूतरों को जाल सहित उड़ते देखकर बहेलिया अवाक रह गया। कुछ संभला तो जाल के पीछे दौड़ने लगा।
कबूतर सरदार ने बहेलिए को नीचे जाल के पीछे दौड़ते पाया तो उसका इरादा समझ गया। सरदार भी जानता था कि अधिक देर तक कबूतर दल के लिए जाल सहित उड़ते रहना संभव न होगा। पर सरदार के पास इसका उपाय था।
निकट ही एक पहाड़ी पर बिल बनाकर उसका एक चूहा मित्र रहता था। सरदार ने कबूतरों को तेजी से उस पहाड़ी की ओर उड़ने का आदेश दिया। पहाड़ी पर पहुंचते ही सरदार का संकेत पाकर जाल समेत कबूतर चूहे के बिल के निकट उतरे।
सरदार ने मित्र चूहे को आवाज दी। सरदार ने संक्षेप में चूहे को सारी घटना बताई और जाल काटकर उन्हें आजाद करने के लिए कहा। कुछ ही देर में चूहे ने वह जाल काट दिया। सरदार ने अपने मित्र चूहे को धन्यवाद दिया और सारा कबूतर दल आकाश की ओर आजादी की उड़ान भरने लगा।
सीखः बड़ी से बड़ी विपत्ति का सामना एकजुट होकर ही किया जा सकता है।
बुद्धिमान हंस
एक बहुत बड़ा विशाल पेड़ था। उस पर बीसीयों हंस रहते थे। उनमें एक बहुत सयाना हंस था, बुद्धिमान और बहुत दूरदर्शी। सब उसका आदर करते ‘ताऊ’ कहकर बुलाते थे।
एक दिन उसने एक नन्ही-सी बेल को पेड़ के तने पर बहुत नीचे लिपटते पाया। ताऊ ने दूसरे हंसों को बुलाकर कहा, देखो, इस बेल को नष्ट कर दो। एक दिन यह बेल हम सबको मौत के मुंह में ले जाएगी।
एक युवा हंस हंसते हुए बोला, ताऊ, यह छोटी-सी बेल हमें कैसे मौत के मुंह में ले जाएगी?
सयाने हंस ने समझाया, आज यह तुम्हें छोटी-सी लग रही है। धीरे-धीरे यह पेड़ के सारे तने को लपेटा मारकर ऊपर तक आएगी। फिर बेल का तना मोटा होने लगेगा और पेड़ से चिपक जाएगा, तब नीचे से ऊपर तक पेड़ पर चढ़ने के लिए सीढ़ी बन जाएगी। कोई भी शिकारी सीढ़ी के सहारे चढ़कर हम तक पहुंच जाएगा और हम मारे जाएंगे।
दूसरे हंस को यकीन न आया, एक छोटी-सी बेल कैसे सीढ़ी बनेगी?
तीसरा हंस बोला, ताऊ, तू तो एक छोटी-सी बेल को खींचकर ज्यादा ही लंबा कर रहा है।
एक हंस बड़बड़ाया, यह ताऊ अपनी अक्ल का रौब डालने के लिए अंट-शंट कहानी बना रहा है।
इस प्रकार किसी दूसरे हंस ने ताऊ की बात को गंभीरता से नहीं लिया। इतनी दूर तक देख पाने की उनमें अक्ल कहां थी?
समय बीतता रहा। बेल लिपटते-लिपटते ऊपर शाखाओं तक पहुंच गई। बेल का तना मोटा होना शुरू हुआ और सचमुच ही पेड़ के तने पर सीढ़ी बन गई। जिस पर आसानी से चढ़ा जा सकता था। सबको ताऊ की बात की सच्चाई सामने नजर आने लगी। पर अब कुछ नहीं किया जा सकता था क्योंकि बेल इतनी मजबूत हो गई थी कि उसे नष्ट करना हंसों के बस की बात नहीं थी।
एक दिन जब सब हंस दाना चुगने बाहर गए हुए थे तब एक बहेलिया उधर आ निकला। पेड़ पर बनी सीढ़ी को देखते ही उसने पेड़ पर चढ़कर जाल बिछाया और चला गया। सांझ को सारे हंस लौट आए और जब पेड़ से उतरे तो बहेलिए के जाल में बुरी तरह फंस गए।
जब वे जाल में फंस गए और फड़फड़ाने लगे, तब उन्हें ताऊ की बुद्धिमानी और दूरदर्शिता का पता लगा। सब ताऊ की बात न मानने के लिए लज्जित थे और अपने आपको कोस रहे थे। ताऊ सबसे रुष्ट था और चुप बैठा था।
एक हंस ने हिम्मत करके कहा, ताऊ, हम मूर्ख हैं, लेकिन अब हमसे मुंह मत फेरो।
दूसरा हंस बोला, इस संकट से निकालने की तरकीब तू ही हमें बता सकता हैं। आगे हम तेरी कोई बात नहीं टालेंगे। सभी हंसों ने हामी भरी तब ताऊ ने उन्हें बताया, मेरी बात ध्यान से सुनो। सुबह जब बहेलिया आएगा, तब मुर्दा होने का नाटक करना। बहेलिया तुम्हें मुर्दा समझकर जाल से निकालकर जमीन पर रखता जाएगा। वहां भी मरे समान पड़े रहना। जैसे ही वह अन्तिम हंस को नीचे रखेगा, मैं सीटी बजाऊंगा। मेरी सीटी सुनते ही सब उड़ जाना।
सुबह बहेलिया आया। हंसों ने वैसा ही किया, जैसा ताऊ ने समझाया था।
सचमुच बहेलिया हंसों को मुर्दा समझकर जमीन पर पटकता गया। सीटी की आवाज के साथ ही सारे हंस उड़ गए। बहेलिया अवाक होकर देखता रह गया।
सीख : बुद्धिमानों की सलाह गंभीरता से लेनी चाहिए।
No comments:
Post a Comment